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स्वास्तिक की खोज का विस्तृत वर्णन, जाने और किस किस धर्म में है इनकी मानता

स्वास्तिक की खोज का विस्तृत वर्णन, जाने और किस किस धर्म में है इनकी मानता

प्रतीक स्वास्तिक के बारे में 10 आश्चर्यजनक तथ्य:1. शोधकर्ताओं के अनुसार स्वास्तिक का चिह्न आर्य


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प्रतीक स्वास्तिक के बारे में 10 आश्चर्यजनक तथ्य:

1. शोधकर्ताओं के अनुसार स्वास्तिक का चिह्न आर्य युग और सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना है। 

2. स्वास्तिक अपनी शुभता की वजह से जाना जाता है और यह शांति एवं निरंतरता का प्रतीक है। हिटलर ने अपने आर्य वर्चस्व सिद्धांत के लिए चुना था।

3. इसे प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से पहले नाजी जर्मनी की नाजी पार्टी ने अपनाया था। स्वास्तिक 11,000 वर्षों से भी पुराना है और पश्चिमी एवं मध्य– पूर्वी सभ्यताओं तक इसके प्रसार का पता चलता है।

4 आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि यूक्रेन का स्वास्तिक पाषाण काल के समय यानि 12,000 वर्ष पुराना माना जाता है।

5 खोज के दौरान शोधकर्ताओं को स्वास्तिक के बारे में जानकारी मिली कि आर्य सभ्यता के साथ संबंधित ऋग्वेद से भी यह पुराना है। शायद पूर्व– हड़प्पा युग से भी पुराना, जब श्रुति परंपरा में यह मौजूद था और मौखिक रूप से इसे सिंधु घाटी सभ्यता को सौंपा गया था।

6 पूर्व– हड़प्पा काल में स्वास्तिक सबसे अधिक परिपक्व पाया गया। साथ ही यह ज्यामीति (Geometrically) के अनुसार अधिक व्यवस्थित और मोहर के रूप में मिला।

7 पूर्व– हड़प्पा युग के आस–पास, वेदों में भी स्वास्तिक के निशान मिले हैं। इन सभी तथ्यों के आधार पर अनुसंधानकर्ताओँ ने यह निष्कर्ष दिया की भारतीय सभ्यता इतिहास की किताबों में लिखी कालावधि के मुकाबले बहुत प्राचीन है।

8 शोधकर्ताओं की टीम ने यह भी बताया कि स्वास्तिक को कमचाटका (Kamchatka) के माध्यम से टैटार (Tartar) मंगोल मार्ग से होकर भारत से बाहर ले जाया गया और अमेरिका पहुंचाया गया ( एज्टेक (Aztec) और मायान (Mayan) सभ्यता में स्वास्तिक का निशान बहुतायत में मिला है) और पश्चिमी भू– मार्ग से फिनलैंड, स्कैंडिनेविया, ब्रिटिश हाइलैंड्स और यूरोप पहुंचाया गया था जहां यह प्रतीक क्रॉस के अलग– अलग आकार (क्रुसिफोर्म) में मौजूद है।

9 आईआईटी–खड़गपुर (IIT-Kharagpur ) और वहां के वरिष्ठ प्रोफेसरों द्वारा आयोजित एक सभा में प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों को समकालीन विज्ञान के साथ मिश्रित करने का प्रयास किया गया| इन लोगों ने स्वास्तिक के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी जुटायी | इस प्रोग्राम को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्रायोजित किया था ।

10 शोधकर्ताओँ ने बताया कि उन्होंने विश्व को नौ खंडों में बांटने के बाद भारत से स्वास्तिक को कहां ले जाया गया, के निशानों का फिर से पता लगाया है और वे प्राचीन मोहरों, शिलालेखों, छापों आदि के माध्यम से अपने दावे को स्पष्ट रूप से सिद्ध करने में सक्षम हैं।


स्वास्तिक के प्रतीक का संक्षिप्त इतिहास और उसका महत्व इस प्रकार हैः

- एशिया में सबसे पहले स्वास्तिक का प्रतीक सिंधु घाटी सभ्यता में 3000 ईसा पूर्व में मिलता है।

- क्या आफ जानते हैं कि स्वास्तिक का प्रतीक फारक के पारसी घर्म (Zoroastrian religion of Persia) में घूमते हुए सूरज, अनंत या निरंतर सृजन का प्रतीक था।

- मौर्य साम्राज्य के दौरान स्वास्तिक का महत्व बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के साथ बढ़ा लेकिन गुप्त साम्राज्य के दौरान बौद्ध धर्म के पतन के साथ इसका महत्व भी कम हो गया।

- दिलचस्प बात यह है कि थाईलैंड में "स्वाद्दी" शब्द जिसका अर्थ होता है " नमस्ते (Hello)" और जिसका इस्तेमाल लोगों के अभिवादन के लिए किया जाता है, संस्कृत शब्द "स्वास्ति" से बना है, जिसका अर्थ है शब्दों का संयोजन यानि समृद्धि, भाग्य, सुरक्षा, महिमा और अच्छाई।

- जैन धर्म मे स्वास्तिक सातवें तीर्थंकर का प्रतीक और अधिक महत्वपूर्ण है।

- चीन, जापान और कोरिया में स्वास्तिक संख्या– 10,000 का हमनाम (homonym) है और आम तौर पर इसका प्रयोग संपूर्ण सृजन के लिए किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग सूर्य के वैकल्पिक प्रतीक के तौर पर भी होता है।

- स्वास्तिक का प्रयोग ईसाई धर्म में ईसाई क्रॉस के अंकुशाकार संस्करण (hooked version) के लिए किया जाता है जो प्रभु ईसा मसीह की मौत पर जीत का प्रतीक है।

- पश्चिमी अफ्रीका में स्वास्तिक का प्रतीक अशांति स्वर्ण वजन (Ashanti gold weights) पर और अदिंकरा प्रतीकों (adinkra symbols) पर पाए गए हैं।

- दिलचस्प बात यह है कि फिनिश वायुसेना ने स्वास्तिक का प्रयोग राज्य– चिन्ह के तौर पर किया जिसकी शुरुआत 1918 में हुई थी।


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